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Tuesday, October 1, 2013

सिनेमा,शहर और सितारे...

 हिंदी सिनेमा ने हमेशा शहरों को जोड़ा है। सिनेमा पटल पर गढ़ी गयी एक शहर की कहानी दूसरे शहर में देखी-सुनी जाती है। फिल्मों के माध्यम से एक शहर की चारित्रिक विशेषताओं को दूसरे शहर के लोग जान और समझ पाते हैं। शहर और सिनेमा के इस कनेक्शन को और भी प्रगाढ़ बनाने के प्रयास हो रहे हैं। मुंबई और दिल्ली जैसे महानगरों के अतिरिक्त अन्य शहरों की पृष्ठभूमि पर आधारित फिल्मों के निर्माण के साथ-साथ अब फिल्म प्रमोशन में भी छोटे शहरों को प्राथमिकता दी जा रही है। इस पूरी प्रक्रिया के दौरान छोटे शहर के प्रशंसकों को अपने प्रिय सितारों को देखने-सुनने के अवसर मिलने लगे हैं। अब छोटे शहर के दर्शक भी खुद को अपने प्रिय सितारे के करीब पा रहे हैं।

प्रशंसक हुए खुश
रणबीर कपूर ' बेशरम' के प्रमोशन के लिए जयपुर और जालंधर पहुंचते हैं,तो पटना में 'गैंग ऑफ़ वासिपुर' के गीत 'जिय हो बिहार के लाला' की पहली झलक से पर्दा उठता है। 'बॉडीगार्ड' के प्रमोशन के लिए सलमान खान इंदौर जाते हैं,तो ' राँझना' की सफलता के बाद सोनम कपूर सबसे पहले बनारस का रुख करती हैं। दरअसल,छोटे शहरों को फिल्म प्रमोशन के दौरान दी जा रही प्राथमिकता ने सितारों और छोटे शहरों के प्रशंसकों के बीच की दीवार गिरा दी है। अब सितारे फिल्म के प्रदर्शन के दौरान उनके बीच होते हैं। अब छोटे शहर के प्रशन्सक भी अपने प्रिय सितारे को करीब से निहार सकते हैं। पिछले दिनों 'शूटआउट एट वडाला' के प्रमोशन के दौरान जॉन अब्राहम से मुलाकात के बाद छोटे शहर की एक युवा प्रशंसक ने अपनी ख़ुशी कुछ इस अंदाज में जाहिर की,'अपने फेवरेट स्टार को सामने देखने का एक्सपीरियंस फिल्म देखने से ज्यादा अच्छा और हैपेनिंग होता है।'

छोटे शहरों से परिचय
 छोटे शहरों में फिल्म प्रमोशन की बढती गतिविधियों के कारण सितारे भी अब खुद को छोटे शहर की संस्कृति के करीब पा रहे हैं। मुंबई और दिल्ली जैसे महानगर में पले-बढे सितारे फिल्म प्रमोशन के बहाने छोटे शहर के लोगों की जीवन शैली,मूल्य,सुविधा-असुविधा और छोटी-छोटी चीजों में खुशियां ढूंढने की कला को समझ पा रहे हैं। इंडिया के साथ-साथ 'भारत' से भी उनका परिचय होने लगा है। महानगरों की भाग-दौड़ से दूर छोटे शहरों की सुकून और शांति की जिन्दगी से वे दो-चार हो रहे है। महानगरों के कूपमंडूक जीवन से वे बाहर निकल रहे हैं। तभी तो बनारस में 'राँझना' की शूटिंग और फिर प्रमोशन की गतिविधियों में हिस्सा लेने के बाद बचपन से मुंबई की महानगरीय जीवनशैली का हिस्सा रही सोनम कपूर ने कहा,' बनारस में जो बात है, जो जोश है वह कहीं, किसी और शहर में नहीं है।'

 अपने शहर में..
 लम्बे अन्तराल के बाद जब फिल्म प्रमोशन के बहाने सितारे अपने शहर में पहुंचते हैं,तो उन्हें अपने दोस्तों,परिवारजनों के साथ कुछ खुशनुमा पल बिताने के मौके मिल जाते हैं। फिल्म प्रमोशन की गतिविधियों में सितारे अपने शहर को जोड़ने का व्यक्तिगत आग्रह करते हैं। वे चाहते हैं कि वे अपने शहर में अपने लोगों के बीच अपनी फिल्म के बारे में जानकारी दें। 'शुद्ध देसी रोमांस' के प्रमोशन के लिए सुशांत सिंह राजपूत का पटना जाने के लिए आग्रह किया,तो सलमान ने ' बॉडीगार्ड' के प्रमोशन के दौरान इंदौर पहुंचकर  बचपन की यादें ताज़ा की। इसी फिल्म प्रमोशन के दौरान इंदौर वासियों से आत्मीयता जाहिर करते हुए सलमान ने इंदौर की किसी लड़की से विवाह की इच्छा भी जता दी। दरअसल,जब सितारे  फिल्म शूटिंग की व्यस्तता के बीच अपने शहर पहुंचते हैं,तो उन्हें स्वदेश लौट आने का अहसास होता है। साथ ही,जब सितारे उपलब्धियों का आसमान छूने के बाद अपने शहर जाते हैं,तो उन्हें अपने शहर के लोगों का उत्साह बढाने का अवसर भी मिलता है। इसका ही एक उदहारण है बरेली वासियों से कहा गया प्रियंका चोपड़ा का यह कथन,' जब मैं बरेली से होते हुए भी मिस वर्ल्ड बन सकती हूं। इतनी बड़ी स्टार बन सकती हूं, तो दूसरी लड़कियां क्यों नहीं बन सकती।दूसरी लड़कियों के परिवार भी उनका साथ दें तो वे भी यह सब हासिल कर सकती हैं।'

सिनेमा में शहर
जब फिल्म किसी शहर विशेष पर आधारित होती है,तो  फिल्म प्रमोशन की गतिविधियों में भी वह शहर केंद्र में होता है। पिछले दिनों प्रदर्शित हुई 'शुद्ध देसी रोमांस' जयपुर में रची-बसी थी इसलिए प्रदर्शन से पूर्व इस फिल्म के सितारे यदा-कदा जयपुर में अपनी उपस्थिति दर्ज कराते रहते थे। बनारस पर आधारित 'राँझना' के प्रमोशन से जुडी गतिविधियों के लिए बनारस को प्राथमिकता दी गयी। दरअसल,इधर कुछ अर्से से निर्माता-निर्देशकों का रुझान छोटे शहरों की तरफ बढ़ा है। अब महानगरों के तिलिस्म से निकलकर फिल्मों की कहानियां उन शहरों को केंद्र में रखकर भी गढ़ी जा रही हैं जहां 'भारत' बसता है। हबीब फैजल, अनुराग कश्यप और दिबाकर बनर्जी जैसे निर्देशक इन्हीं शहरों की वास्तविकता को दिखाने के लिए दिल्ली और मुंबई से बाहर निकले और 'इशकजादे', 'गैंग्स ऑफ वासेपुर' और 'शंघाई' जैसी फिल्में बनायी। हबीब फैजल कहते हैं,' छोटे शहर काफी जीवंत और रंगीन है। वहां के लोगों में हास्य को लेकर दिलचस्प भावना है और उनके जीवन में अलग तरह का लय होता है। इसी विशेषता ने 'इशकजादे' बनाने के लिए मुझे प्रेरित किया।'

शहर और सिने बाजार
फिल्म निर्माता और वितरक की नजर विभिन्न शहरों के दर्शकों की रूचि पर होती है। बाजार में अपनी फिल्म को लाने के पहले वे तय कर लेते हैं कि किस शहर को प्राथमिकता देनी है। इस सन्दर्भ में शहर विशेष में फिल्म की विधा विशेष की लोकप्रियता के आधार पर निर्णय लिए जाते हैं। उदाहरण स्वरुप हास्य रस से भरपूर फिल्मों के लिए गुजरात के शहरों को प्राथमिकता दी जाती है,तो सलमान खान की एक्शन मसाला फिल्मों को राजस्थान के विभिन्न शहरों के दर्शक अधिक पसंद करते हैं। मुंबई-दिल्ली के अतिरिक्त जिन शहरों को फिल्म प्रमोशन के दौरान प्राथमिकता दी जाती है वे हैं-चंडीगढ़,जालंधर,लखनऊ,इंदौर,जयपुर,पटना,नागपुर,पुणे,बड़ोदा,अहमदाबाद। प्रतिष्ठित फिल्म मार्केटिंग और पी आर एजेंसी स्पाइस भाषा के प्रभात चौधरी कहते हैं,'छोटे शहर फिल्म व्यवसाय में बेहतरीन योगदान दे रहे हैं। छोटे शहरों में ज्यादा-से-ज्यादा मल्टी प्लेक्स खुल रहे हैं। इससे उन शहरों में फिल्म व्यवसाय की संभावनाएं भी अधिक बढ़ रही हैं। अब यह आवश्यक हो गया है कि फिल्म का प्रमोशन महानगरों के बाहर किया जाए।' सच तो यह है कि महानगरों की अपेक्षा शहरों को फिल्म प्रमोशन की गतिविधियों में प्राथमिकता देने के साथ-साथ यदि  अधिक-से-अधिक फिल्मों का निर्माण छोटे शहर की पृष्ठभूमि पर किया जाएगा तभी सही मायने में शहर, सिनेमा और सितारों का यह ताना-बाना निखरकर सामने आएगा ..

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सौम्या अपराजिता