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Monday, October 14, 2013

निर्देशकों की धुन ....

आमतौर पर सितारे निर्देशकों के मुख से निकले ' लाइट', ' कैमरा' और 'एक्शन' जैसे संकेत शब्दों पर अमल करते हुए स्क्रीन पर अभिनय की बानगी पेश करते हैं। ...पर कई बार सितारे निर्देशकों की धुनों पर झूमते और इठलाते भी हैं। जब फिल्म निर्देशक स्वयं संगीतकार हो,तो उसके धुनों से सजे गीतों पर सितारों का थिरकना लाजिमी है।

दरअसल,जमाना मल्टीटास्किंग का है। जो व्यक्ति एक साथ कई काम कर सकता है उसे किसी का मोहताज नहीं होना पड़ता। जरुरत महसूस होने पर वह कई कार्यों की बागडोर अपने हाथ में लेकर खुद को संतुष्ट कर सकता है। यदि हिंदी फ़िल्मी परिप्रेक्ष्य में देखें..तो कई ऐसे फिल्म निर्देशक हैं जो एक साथ निर्देशन,निर्माण और संगीत निर्देशन की बागडोर संभालने का माद्दा रखते हैं। वे जितने अच्छे निर्देशक और निर्माता हैं..उतने ही सुलझे हुए और समर्थ संगीत निर्देशक भी हैं। निर्माण,निर्देशन के साथ-साथ संगीत-निर्देशन की जिम्मेदारी साथ-साथ निभा रही शक्सियतों में संजय लीला भंसाली और विशाल भारद्वाज के नाम उल्लेखनीय हैं।

संजय लीला भंसाली को सृजन करना पसंद है। वे सिल्वर स्क्रीन पर भव्य और आकर्षक कैनवास का सृजन करते हैं। उनकी हर फिल्म किसी खूबसूरत पेंटिंग की तरह होती है। वे सिर्फ फिल्म निर्देशन और निर्माण में ही नहीं संगीत की रचना में भी अपनी कल्पनाशीलता और सृजनशीलता का अनूठा परिचय देते हैं। फिल्म निर्देशन और निर्माण में अपनी पैंठ बनाने के बाद संजय संगीत निर्देशक बने।' गुज़ारिश' से संजय ने बतौर संगीत निर्देशक अपने सुरीले सफ़र की शुरुआत की। संजय के इस पहले प्रयास को श्रोताओं की सकारात्मक प्रतिक्रिया मिली। अब दूसरी बाद 'राम लीला' में उनके धुन धूम मचा रहे हैं। 'गुजारिश' के गीतों में कर्णप्रियता का पुट ज्यादा था जबकि 'राम-लीला' के संगीत में विविधता झलक रही है। संजय कहते हैं,'मेरे सीने में हमेशा एक संगीतकार का दिल धड़कता रहा है।मैं महसूस करता रहा हूं कि लता मंगेशकर के गीत स्क्रीन पर मानवीय भावनाओं को बखूबी पेश करते रहे हैं। मुझे लगता है कि मैं एक सम्पूर्ण फिल्म मेकर तभी बन पाऊंगा जब मैं अपने द्वारा रचित किरदारों के म्यूजिकल इमोशन को दिखा पाऊंगा।' संजय आगे कहते हैं,'  मुझे लगता कि मैं जितनी अच्छी तरह से मैं अपने किरदारों  को समझकर उनके भावों को संगीत में प्रेषित कर सकता हूं  उतनी अच्छी तरह कोई दूसरा संगीतकार नहीं कर सकता है।'

विशाल भारद्वाज को फिल्मों की तरह ही उनका संगीत भी अनूठा,अलग और अतुल्य होता है। अपनी हर फिल्म को संगीत से सजाने की जिम्मेदारी विशाल स्वयं संभालते हैं। विशाल कहते हैं,' स्क्रिप्ट समझने के बाद ही आप बेहतर संगीत दे सकते हैं।'संगीत में धमक रखने वाले इस फिल्म निर्देशक की सुरीली प्रतिष्ठा का प्रमाण उन्हें मिल चुके सर्वश्रेष्ठ संगीत के दो राष्ट्रीय फिल्म पुरस्कार हैं। हिंदी सिनेमा को 'ओंकारा','मकड़ी','मकबूल' और 'कमीने' जैसी फिल्मों का तोहफा दे चुके विशाल के संगीत से जुड़ा रोचक तथ्य है कि वे अपने संगीत में पाश्चात्य शास्त्रीय संगीत को नए अंदाज में पेश करते हैं। विशाल कुछ यूं धुनों की रचना करते हैं जिसमें गीत और संगीत दोनों एक धागे में गूंथे हुए-से लगते हैं।


 फराह खान के पति शिरीष कुंदर ने भी निर्देशन,संपादन,लेखन के साथ-साथ संगीत निर्देशन की जिम्मेदारी निभाने का हौसला दिखाया है। शिरीष ने फराह खान निर्देशित ' तीस मार खां' के शीर्षक गीत को अपने धुन से सजाया तो ' जोकर' के संगीत की रचना की। शिरीष कहते हैं,'औपचारिक रूप से संगीत निर्देशक के रूप में मेरी शुरुआत 'तीस मार खां' के टाइटल ट्रैक से हुई। हालांकि, उससे पहले मैंने ' जानेमन' के म्यूजिक में अपना इनपुट दिया था। साथ ही बैकग्राउंड म्यूजिक कंपोज़ करता रहा हूं। म्यूजिक कम्पोजिंग के प्रोसेस को मैं बेहद एन्जॉय करता हूं।'

सुभाष घई ने हालांकि औपचारिक रूप से संगीत निर्देशन नहीं किया है,पर अपनी फिल्मों के संगीत को वे अपनी सृजनशीलता से प्रभावित करते रहे हैं। सुभाष कहते हैं,'संगीत मेरी आत्मा से जुड़ा है। मुझे सबसे बड़ा दुख है कि मैंने शास्त्रीय संगीत नहीं सीखा।' चर्चा है कि सुभाष घई अब औपचारिक रूप से संगीत निर्देशक बनने की तैयारी कर रहे हैं। सलमान खान के आग्रह पर सुभाष ने संगीत निर्देशक बनने का निर्णय किया है। सुभाष के धुनों से सजने वाली पहली फिल्म होगी सलमान खान प्रोडक्शन के बैनर तले बनने वाली 'हीरो' की रीमेक।

निर्माण और निर्देशन के साथ-साथ अनुराग कश्यप संगीत में भी रूचि रखते हैं। कहा जा रहा है कि अनुराग कश्यप अपने बैनर 'फैंटम' के तले बनने वाली कंगना रनोट अभिनीत नयी फिल्म ' क्वीन' के एक गीत की रचना में योगदान दिया है। दरअसल,अनुराग ने पिछले दिनों शिमला प्रवास के दौरान स्थानीय गायक और संगीत निर्देशक रुपेश कुमार राम की एक रचना को ' क्वीन' की थीम के अनुसार ढालकर एक गीत की शक्ल दी है। रुपेश की सहमति से तैयार हुए इस गीत की रचना में अनुराग की संगीत के प्रति रूचि की झलक मिलती है। हालांकि, संगीत निर्देशक बनने की दिशा में अनुराग ज्यादा अग्रसर नहीं हैं फिर भी उनके इस प्रयास से जाहिर हो जाता है कि भविष्य में वे भी फ़िल्मी दुनिया में सुरीली धमक दे सकते हैं।
-सौम्या अपराजिता