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Monday, May 12, 2014

सिनेमा में मां...


जब संगीत के जादूगर ए आर रहमान को ऑस्कर के प्रतिष्ठित मंच पर सर्वश्रेष्ठ संगीतकार के पुरस्कार से सम्मानित किया गया,तो अभिवादन भाषण में रहमान ने उस क्षण की ख़ुशी बयां करते हुए कहा था,'हिन्‍दी फिल्मों का एक मशहूर डॉयलाग है-'मेरे पास मां है'।इस वक़्त मैं भी गर्व के साथ कह सकता हूं कि मेरे पास मां है। यह पुरस्कार उन्हीं का आशीर्वाद है।'इस अभिवादन भाषण में ए आर रहमान ने अनजाने में ही विश्व सिनेमा के सर्वाधिक प्रतिष्ठित मंच पर हिंदी फिल्मों में मां के महत्त्व को प्रकाशित कर दिया। ..और साथ ही यह भी बता दिया कि हमारी फिल्मों की कहानियों में मां का चरित्र कितना महत्वपूर्ण है,तभी तो हिंदी फिल्मों के इतिहास का सर्वाधिक लोकप्रिय संवाद 'मेरे पास मां है' भी मां को समर्पित है।

दरअसल,भारतीय परिप्रेक्ष्य में मां के अस्तित्व के भावनात्मक पहलू को उभारने में हिंदी फिल्मों ने महत्वपूर्ण भूमिका निभायी है। फिल्मों में मां की करुणामयी छवि को बेहद संजीदा अंदाज में प्रस्तुत किया जाता रहा है। कई  फिल्मों की कहानियां मां के चरित्र के इर्द-गिर्द बुनी गयी हैं,तो कई फिल्मों में नायक का उसकी मां से आत्मीय सम्बन्ध मुख्य कथानक रहा है। मां की करुणामयी छवि को चित्रित करने वाली अभिनेत्रियों ने अपने अभिनय और अनुभव से फिल्मों में मां के अस्तित्व को नए आयाम दिए हैं। इन अभिनेत्रियों में निरूपा रॉय उल्लेखनीय हैं। निरूपा रॉय ने सिल्वर स्क्रीन पर मां के इतने चरित्रों को जीवंत किया है कि उन्हें 'हिंदी फिल्मों की मां' की उपाधि दी जाती है। 'दीवार' से लेकर 'मर्द' तक और 'अमर अकबर एंथोनी' से लेकर ' लाल बादशाह' तक निरूपा रॉय ने दर्जनों फिल्मों में मां की भूमिका में अभिनय के रंग भरे हैं। निरूपा रॉय के बाद जिस अभिनेत्री को मां की भूमिका में दर्शकों का सर्वाधिक प्यार-दुलार मिला है..वह हैं राखी। राखी ने ' करण अर्जुन','राम-लखन','बाजीगर' और ' दिल का रिश्ता' जैसी कई फिल्मों मां की भूमिका को चित्रित किया। हालांकि, निरूपा रॉय और राखी ने कई फिल्मों में मां की भूमिकाएं निभाकर हिंदी फिल्मों की लोकप्रिय मां की उपाधि पायी,वहीं नर्गिस ने पहली बार ही 'मदर इण्डिया' में मां की भूमिका को इतने प्रभावी अंदाज में निभाया कि वह भूमिका हिंदी फिल्मों की  मां की सर्वाधिक सशक्त और प्रभावशाली भूमिका बन गयी। एक युवती की अस्मिता के लिए अपने प्रिय पुत्र को गोली मारने की हिम्मत रखने वाली मां के इस चरित्र में नर्गिस ने अपने अभिनय की ऐसी बानगी पेश की कि'मदर इंडिया' ऑस्कर पुरस्कार में नामांकित कर ली गयी। हिंदी फिल्मों में मां के चरित्रों को अपने अभिनय के रंग से रंगने वाली अभिनेत्रियों में दुर्गा खोटे,स्मिता जयकर, अचला सचदेव, रीमा लागू, ललिता पवार, अमीर बानो, फरीदा जलाल,लीला मिश्रा और कामिनी कौशल भी उल्लेखनीय हैं।

कुछ वर्ष पूर्व तक सिल्वर स्क्रीन की मां त्याग और करूणा की प्रतिमूर्ति थी। वह बिना उफ़ किये दूखों का पहाड़ उठा लेती थी। अपने परिवार का पालन-पोषण करने के लिए जीवन भर त्याग करती रहती थी। तमाम तकलीफों और पति द्वारा ठुकराए जाने के बाद भी उसमें अपने बच्चों की खातिर जीने की हिम्मत थी।वह बेसहारा और लाचार थी,पर अपने बच्चों को संस्कारी बनाने का कोई मौका नहीं चूकती थी। अब सिल्वर स्क्रीन की मां का रूप बदल चुका है। बदलते वक़्त के साथ हिंदी फिल्मों की मां भी अब बिंदास और खुले विचारों वाली हो गयी है। वह बेबस और लाचार नहीं है। वह खुश और उत्साही है।  पूरे आत्मविश्वास के साथ अपने दम पर वह बच्चों के भरण-पोषण की हिम्मत रखती है। अब वह अपने पुत्र-पुत्री से उनके गर्ल फ्रेंड और बॉय फ्रेंड के विषय में बातें किया करती है। मर्यादा और परंपरा की चादर को उतारकर अब वह भी पार्टियो में झूमती है। अब उसके बाल सफ़ेद नहीं होते। अब वह किस्मत के भरोसे नहीं रहती,बल्कि किस्मत को बदलने की हिम्मत रखती है। 'जाने तू या जाने ना' की मां ऐसी ही थी। रत्ना शाह पाठक द्वारा निभायी गयी आधुनिक मां की इस लोकप्रिय भूमिका के इत्तर यदि मौजूदा दौर की बात करें,तो किरण खेर इस दौर की सर्वाधिक लोकप्रिय ऑन स्क्रीन मां हैं। किरण ने कई फिल्मों में आधुनिक मां की बिंदास छवि को बखूबी निभाया है। 'सिंह इज किंग','कभी अलविदा ना कहना','हम-तुम','वीर-जारा','दोस्ताना','मैं हूं ना' में किरण ने मां की रोचक भूमिकाओं को शिद्दत से निभाया और खुद को हिंदी फिल्मों में नयी पीढ़ी की लोकप्रिय मां के रूप में स्थापित किया। किरण के साथ ही फरीदा जलाल भी नयी पीढ़ी की दुलारी ऑन स्क्रीन मां हैं। अपनी मासूमियत और चुलबुले अंदाज से फरीदा जलाल मां की भूमिका को अलग रंग देती हैं। बीते दौर की मुख्य धारा की अभिनेत्रियां भी अपने अनुभव से मां की भूमिका को प्रभावी अंदाज में चित्रित करती रही हैं इनमें जया बच्चन और हेमा मालिनी उल्लेखनीय हैं। जया बच्चन ने 'फिजा','कल हो न हो' और 'कभी ख़ुशी कभी गम' में,तो हेमा मालिनी ने 'बागबां' में मां की भूमिका में अपने उम्दा अभिनय की छाप छोड़ी। जया और हेमा मालिनी की तरह कई और लोकप्रिय अभिनेत्रियां अपनी बढ़ती उम्र के मद्देनजर मां की भूमिका में रूचि दिखा रही हैं। इनमें रति अग्निहोत्री,पूनम ढिल्लन और पद्मिनी कोल्हापुरे काबिलेजिक्र हैं। ये तीन अभिनेत्रियां पिछले वर्ष प्रदर्शित हुई फिल्मों में पहली बार मां की भूमिका निभाती हुई दिखीं,तो वहीँ पिछले दिनों प्रदर्शित हुई 'टू स्टेट्स' में अमृता सिंह और रेवती ने नए दौर में मां की भूमिका के महत्त्व को नए सिरे से परिभाषित किया।

हिंदी फिल्मों में मां के चरित्रों द्वारा बोले गए लोकप्रिय संवाद-
मेरे पास मां है (दीवार)
एक बार मुझे मां कहकर पुकारो बेटा (दीवार)
जुग-जुग जियो मेरे लाल (मदर इंडिया)
मेरे दूध का कर्ज चुकाने का वक़्त आ गया है (मदर इंडिया)
मेरे करण-अर्जुन आएंगे (करण अर्जुन)
मेरे लाल को यूं मत डांटिए (हम आपके हैं कौन)


मां ने दिखायी अभिनय की राह

मौजूदा दौर के कई अभिनेता-अभिनेत्रियों के लिए उनकी अभिनेत्री मां प्रेरणा रही हैं। मां से उन्हें अभिनय की विरासत मिली। मां की उपलब्धियों की बदौलत उन्हें हिंदी फिल्मों में शुरूआती पहचान मिली और सम्मान मिला। इन अभिनेता-अभिनेत्रियों में काजोल और सैफ अली खान उल्लेखनीय हैं। काजोल ने जहां मां तनुजा से प्रेरित होकर हिंदी फिल्मों में अभिनय के सफ़र की शुरुआत की,वहीं सैफ अली खान ने मां शर्मिला टैगोर के प्रोत्साहन से अभिनय जगत में प्रवेश किया। बड़े भाई की ही तरह सोहा अली खान ने भी हिंदी फिल्मों में अपनी पहचान बनायी। हेमा मालिनी ने ड्रीम गर्ल बनकर कई वर्षों तक हिंदी फ़िल्मी पटल पर अभिनय की बानगी पेश की,तो उनकी पुत्री एषा देओल ने भी मां के नक्शेकदम पर चलते हुए फिल्मों की राह अपना ली। अभिनय की दुनिया में अभिषेक बच्चन के मनोबल को मां जया बच्चन ने बढ़ाया,तो मूनमून सेन ने रिया सेन और राइमा सेन के लिए फिल्मों की राह प्रशस्त की,वहीं डिम्पल कपाड़िया की दोनों बेटियों ट्विंकल खन्ना और रिंकी खन्ना ने हिंदी फिल्मों में अपनी किस्मत आजमायी। करीना कपूर और करिश्मा कपूर के लिए उनकी मां बबीता प्रेरणा बनीं,तो लाजवाब अभिनेता के रूप में रणबीर कपूर की पहचान में मां नीतू कपूर का महत्वपूर्ण योगदान है।

मां की प्रेरणा से अभिनय की राहों पर जो चलें..


शोभना समर्थ- तनूजा और नूतन
तनुजा - काजोल
शर्मीला टैगोर - सैफ अली खान और सोहा अली खान
हेमा मालिनी- एषा देओल
मूनमून सेन - रिया सेन और राइमा सेन
बबीता-करीना कपूर और करिश्मा कपूर
नीतू कपूर-रणबीर कपूर
नर्गिस दत्त-संजय दत्त
स्मिता पाटिल-प्रतीक
डिम्पल कपाड़िया-ट्विंकल खन्ना
जया बच्चन-अभिषेक बच्चन
रति अग्निहोत्री-तनुज विरमानी
नूतन-मोहनीश बहल
किरण खेर-सिकंदर


  • -सौम्या अपराजिता

Sunday, March 16, 2014

होली के रंग सिनेमा के संग

गुलाल और रंगों से सराबोर कपड़ों में ढोलक की थाप पर उल्लास के इन्द्रधनुषी रंग बिखेरते नायक-नायिका अब सिल्वर स्क्रीन पर कम ही दिखते हैं। होली के त्योहार को प्रतीकात्मक रूप से फिल्मों की कहानी में पिरोने का सिलसिला अब गुजऱे जमाने की बात हो गयी है। 
जैसे-जैसे फिल्मों के तकनीकी पक्ष और भव्यता को लेकर  फिल्ममेकर गंभीर होते जा रहे हैं,परंपरागत त्योहारों के उल्लास से हमारी फिल्मों की दूरियां भी बढ़ती जा रही हैं। होली के रंगों से भींगी रहने वाली फिल्में अब दर्शकों के लिए कम उपलब्ध हुआ करती हैं। कभी,होली का त्योहार हमारी फिल्मों की पटकथा का प्रिय विषय हुआ करता था ,पर आज की फिल्मों में होली के दृश्य शायद ही रहते हैं। फिल्मों में होली के दृश्यों के लुप्तप्राय होने के सन्दर्भ में फिल्म विशेषज्ञ तरन आदर्श  कहते हैं,'यह सच है कि इन दिनों हिंदी फिल्मों में होली का सेलिब्रेशन नहीं दिखता है। पहले की फिल्मों में  स्क्रिप्ट में होली के दृश्यों की गुंजाइश रखी जाती थी जबकि आज कल फिल्म मेकर अपनी स्क्रिप्ट को लेकर ज्यादा स्ट्रिक्ट हैं। ऐसे में अगर स्क्रिप्ट में  होली का जिक्र नहीं है,तो वे जबरदस्ती होली के दृश्य अपनी फिल्म में नहीं डालते हैं।'यदि बीते कुछ वर्षों की बात करें,तो पिछले वर्ष प्रदर्शित हुई 'ये जवानी है दीवानी' में दीपिका पादुकोण और रणबीर कपूर पर फिल्माए गए गीत 'बलम पिचकारी' के दृश्यों को छोड़ दें, तो फिल्मों में  होली की रंगीन फिजाएं नाममात्र ही दिखीं। एक समय ऐसा भी था जब हमारी फ़िल्में होली के रंगों से भींगी रहती थीं। होली से हमारे फिल्ममेकरों का लगाव इतना अधिक हुआ करता था कि वे अपनी फिल्म के शीर्षक में भी होली के रंग भर देते थे।

खुशियों का इजहार करना हो या प्यार भरी छेड़छाड़ हो या फिर,जीवन के खुशनुमा पलों को याद करना हो -माध्यम रहता था, होली का त्योहार। होली को केंद्र में रखकर कई  फिल्में प्रदर्शित हो चुकी हैं। 'होली' शीर्षक से ही दो फिल्में बन चुकी हैं। जहाँ 1940 में बनी 'होली' में सितारा देवी,मोतीलाल  थें वहीं,1984 में प्रदर्शित हुई केतन मेहता की 'होली' से आमिर खान ने अपने फिल्मी करियर की शुरूआत की थी। माला सिन्हा,बलराज साहनी,शत्रुघ्न सिन्हा अभिनीत 'होली आयी रे' होली को केंद्र में रखकर बनायी गयी फिल्मों में सबसे उल्लेखनीय है। होली की पृष्ठभूमि में रखकर बनायी गयी 'होली आयी रे' आज भी जब टेलीविजन पर दिखायी जाती है तो दर्शक इस फिल्म के साथ होली के रंग में गीले हो जाना पसंद करते हैं। मधुबाला और भारत भूषण अभिनीत 'फागुन' और धर्मेंद्र और वहीदा रहमान अभिनीत 'फागुन ' की पटकथा  होली के रंगों से सराबोर थी। इन फिल्मों के शीर्षक मात्र से ही होली के मनोहारी दृश्य मन-मस्तिष्क में कौंध जाते हैं। होली हमारे फिल्म निर्माताओं का सबसे प्रिय त्योहार रहा है।
कहानी में ट्विस्ट लाने के लिए होली के त्योहार का प्रयोग हिन्दी फिल्मों में होता रहा है। सत्तर-अस्सी के दशक में तो हर पांचवी फिल्म में होली के दृश्यों का फिल्मांकन किया जाता था। 'शोले' की होली हिंदी सिनेमा की यादगार होली रही है। गब्बर ने रामगढ़ पर आक्रमण करने के लिए होली का ही दिन चुना था। पुरानी 'शोले' के ही तर्ज पर 'रामगोपाल वर्मा की आग' का बब्बन भी अपने छोटे भाई की मौत का बदला लेने के लिए होली का दिन चुनता है। लेकिन,'रामगोपाल वर्मा की आग' की होली 'शोले' की होली के सामने फींकी लगती है। 'सिलसिला' में अमिताभ-रेखा के प्रेम संबंधों की गूढ़ता को 'रंग बरसे' गीत ने सरल कर दिया था तभी तो लोक-लाज की परवाह किए बिना होली के बहाने इस गीत में अमिताभ ने रेखा के प्रति अपनी कोमल भावनाओं का सरेआम इजहार कर दिया। भावनाओं के उमड़ते बादल को होली के गीत सहारा देते आए हैं। होली के पावन पर्व की आड़ में होने वाले दुराचार पर भी कई फिल्मों की कहानी की नींव रखी गयी है। 'होली आयी रे' और 'दामिनी' की कहानी ऐसे ही दृश्यों से प्रारंभ होती है। 
आजकल,होली की पृष्ठभूमि पर आधारित फिल्में तो दूर की बात है ,होली के दृश्य भी रूपहले पर्दे से ओझल होते जा रहे हैं। व्यावसायिक सफलता की चाह में हमारे फिल्म निर्माता परंपरागत त्योहारों का महत्व नहीं समझ पा रहे हैं।

'होली के दिन दिल मिल जाते हैं' गीत की पंक्तियां आज प्रासंगिक नहीं लगती हैं। प्रेम का इजहार करने के लिए नायक अब होली का इंतज़ार नहीं करते। इंस्टैंट प्रेम का जमाना है....होली के त्योहार का इंतजार करना हमारे आधुनिक नायकों को नहीं भाता है, अब तो 'वैलेंटाइन डे' ही उनके अनुकूल है। शायद ,यही वजह है कि 'चल जा रे हट नटखट','आज ना छोड़ेंगे बस हमजोली' जैसे प्रेम-रस से सराबोर होली के गीतों का अभाव आज की फिल्मों में मिलता है। इन पुराने नटखट गीतों की तर्ज पर हमारी युवा पीढ़ी को भी अपने जमाने के होली के गीतों की दरकार है। ऐसा नहीं है कि होली के गीत फिल्मों से पूरी तरह विलुप्त हो गए हैं। कोशिशें होती हैं लेकिन परिणाम सकारात्मक नहीं आते हैं। हमारी नायिकाएं अब 'होली आयी रे कन्हाई रंग बरसे सुना दे जऱा बांसुरी' की जगह 'डू मी ए फेवर लेट्स प्ले होली' गुनगुनाना बेहतर समझती है। राधा-कृष्ण की पारंपरिक होली पर  अंग्रेजी रंग चढ़ गया है। यही वजह  है कि अंग्रेजी बोलों में ढले ये गीत होली की परंपराओं का निर्वहन नहीं कर पाते हैं और जल्द ही गुमनामी के अंधेरे में चले जाते हैं। 'बागबान' के गीत 'होली खेले रघुवीरा' और 'बनारस' के गीत 'रंग डालो फेंकों गुलाल' को छोड़कर शायद ही कोई ऐसा होली के रंगों में भींगा गीत हो जो यादगार बन गया हो। होली के उल्लास की बानगी बयां करते इन दोनों गीतों के लेखक  समीर कहते हैं,'आज ऐसा वक्त आ गया है कि हमारी फिल्मों से त्योहार गायब हो गए हैं। न होली दिख रही है न दीवाली। मेरा मानना है कि हमें अपनी परंपराओं से कटना नहीं चाहिए। ये त्योहार ही हैं जो हमें ऊर्जा देते हैं।'उल्लेखनीय है कि भारतीय सिनेमा ने अपने सौ साल के सफ़र में होली के गीतों के जरिये समाज और संस्कृति की ख़ूबसूरत तस्वीर पेश की है। कई बार तो ये गीत होली का पर्याय बनकर उभरे हैं।
उम्मीद है..इस इंद्रधनुषी उत्सव की छटा पुन: रूपहले पर्दे पर बिखरेगी और एक बार फिल्मी कैनवास पिचकारियों की धार और गुलाल की बौछार से रंगीला हो जाएगा।
-सौम्या अपराजिता

Sunday, November 3, 2013

दीपावली की दीवानगी...

भारतीय परिप्रेक्ष्य में दीपावली व्यवसायियों का सबसे प्रिय और महत्वपूर्ण त्यौहार है। दीपावली व्यावसायिक समृद्धि और प्रगति का प्रतीक है। यही कारण है कि दीपावली के इर्द-गिर्द उपभोक्ताओं को रिझाने के लिए नए-नए प्रयास किये जाते हैं। फिल्म व्यवसाय से जुड़े लोगों के लिए भी दीपावली नयी उम्मीदों और समृद्धि का संकेत सूचक है। तभी तो  दीपावली के इर्द-गिर्द अपनी फिल्म के प्रदर्शन को लेकर निर्माता-निर्देशक एड़ी-चोटी का जोर लगाते हैं। वे वह हर संभव प्रयास करते हैं जिससे उनकी फिल्म दीपावली की छुट्टियों के आस-पास प्रदर्शित हो। दीपावली की दीवानगी फ़िल्मी दुनिया पर इस कदर हावी है कि दीपावली पर बड़ी फिल्मों का प्रदर्शन एक बड़ा और आकर्षक आयोजन बन गया है।

सपरिवार मनोरंजन
दरअसल,दीपावली के आस-पास के दिन फिल्म व्यवसाय के लिए अपेक्षाकृत अनुकूल माने जाते हैं। छुट्टियों का माहौल होता है। लोग सपरिवार छुट्टियों का आनंद लेना चाहते हैं। साथ ही,मनोरंजन के लिए पूँजी निवेश करने में भी वे नहीं हिचकिचाते हैं। ऐसे में, संभवतः सपरिवार मनोरंजन के लिए फ़िल्में उनके सामने सबसे प्रिय विकल्प के रूप में उभरती हैं। ..और इस तरह दीपावली के इर्द-गिर्द होने वाली छुट्टियों के दौरान अधिकांश लोग सपरिवार सिनेमाघरों का रुख करने लगते हैं। इन्हीं पारिवारिक दर्शकों को रिझाने के लिए दीपावली के दौरान सपरिवार देखी जाने वाली फिल्मों के प्रदर्शन को प्राथमिकता दी जाती है। इस वर्ष दीपावली के अवसर पर 'कृष 3' के प्रदर्शन की योजना भी इसी आधार पर बनी । गौरतलब है कि व्यवसाय और रोजमर्रा के कार्यों में व्यस्त होने के कारण माता-पिता अपने बच्चों के साथ सिनेमाघरों का रुख नहीं कर पाते हैं। ऐसे में दीपावली की छुट्टियों के दौरान प्रदर्शित होने वाली 'कृष3' जैसी फिल्म बच्चों को उनके माता-पिता और अन्य रिश्तेदारों के साथ सिनेमाघरों तक खींचने में सक्षम होती है। गौर करें तो दीपावली के दौरान प्रदर्शित होने वाली अधिकांश फ़िल्में पारिवारिक मनोरंजन को ध्यान में रखकर बनायी जाती हैं।

कमाई की गारंटी
पिछले कुछ अर्से से दीपावली के दौरान प्रदर्शन फिल्म व्यवसाय के लिए सुखद संकेत लेकर आता रहा है। फिल्म-प्रदर्शन के लिए दीपावली को कमाई की गारंटी माना जाने लगा है। इसका अंदाजा इस बात से ही लग जाता है कि एक वर्ष से पूर्व ही निर्माता-निर्देशकों के बीच दीपावली के दौरान अपनी फिल्म के प्रदर्शन की तारीख सुरक्षित करने की होड़-सी लग जाती है। उदहारण स्वरूप अगले वर्ष दीपावली के दौरान 'शुद्धि' के प्रदर्शन के लिए करण जौहर ने तारीख सुरक्षित कर ली है जबकि अन्य बड़े निर्माता-निर्देशक इस दिशा में अभी प्रयासरत हैं। रोचक है कि अभी से 2015 की दीपावली के दौरान राजश्री प्रोडक्शन की अपनी नयी फिल्म के प्रदर्शन के लिए सलमान खान तारीख सुरक्षित करने की जुगत लगा रहे हैं। इस सन्दर्भ में ट्रेड विशेषज्ञ तरण आदर्श कहते हैं,'सभी आजकल अपनी फिल्म के लिए दीपावली की रिलीज़ बुक करना चाहते हैं। उन्हें यह बखूबी पता है कि इस डेट पर फिल्में रिलीज करना मोटी कमाई की गारंटी है। यही वजह है कि न सिर्फ मौजूदा बल्कि आने वाले साल की दीपावली पर रिलीज होने वाली फिल्मों के नाम सबको पता है। मेरा मानना है कि इस ट्रेंड में कोई बुराई नहीं है।'

शुक्रवार का इंतज़ार नहीं
यूं तो आम दिनों में फ़िल्में शुक्रवार को प्रदर्शित होती हैं।.. लेकिन जब दीपावली की बात होती है,तो इस मौके को भुनाने के लिए फिल्म निर्माता-वितरक फिल्म को शुक्रवार से पहले भी प्रदर्शित करने में नहीं हिचकिचाते हैं। इस बार भी 'कृष 3' का प्रदर्शन दीपावली के दिन अर्थात रविवार को होना था,पर बाद में इसे बदलकर दो दिन पहले शुक्रवार कर दिया गया। दरअसल,आमतौर पर दीपावली के दिन फिल्म रिलीज करने की परंपरा है, लेकिन ऐसा माना जाता है कि दीपावली  वाले दिन, शाम और रात के कलेक्शन में थोड़ी गिरावट आ जाती है क्योंकि लोग दीपावली का त्योहार मनाने में व्यस्त हो जाते हैं। यही वजह है कि राकेश रोशन ने 'कृष3' को दीपावली के दो दिन पहले प्रदर्शित करने का निर्णय लिया। गौरतलब है कि वर्ष 2008 में दीपावली के दौरान 'फैशन' और गोलमाल रिटर्न्स' मंगलवार को प्रदर्शित हुई थी,तो 2005 में 'गरम मसाला' और शादी नंबर वन' बुधवार को प्रदर्शित हुई।

बड़े सितारों की चांदी
हिंदी फिल्म प्रेमियों के दिलों में उनके प्रिय सितारे बसते हैं। विशेषकर प्रथम श्रेणी के सितारों को लेकर सिनेप्रेमियों में इतना उत्साह रहता है कि वे उन्हीं के साथ सिनेमाघरों में दीपावली मनाना चाहते हैं। प्रशंसकों के इसी प्रेम और उत्साह के कारण बड़े सितारे दीपावली के आस-पास अपनी फिल्म के प्रदर्शन को लेकर उत्सुक रहते हैं। प्रशंसक भी चाहते हैं कि उनके प्रिय अभिनेता की फिल्म दीपावली के दौरान प्रदर्शित हो ताकि निजी जीवन की व्यस्तताओं से मुक्त रहने वाले दिनों में वे अपने प्रिय सितारे के नए अंदाज और तेवर को सिनेमाघरों में निहार सकें। यही वजह है कि बड़े सितारों के लिए दीपावली भाग्यशाली साबित हुआ है। हालांकि, शाहरुख़ खान के लिए दीपावली कुछ ज्यादा ही सुखद संकेत लेकर आता रहा है। शायद यही वजह है कि शाहरुख़ अगले वर्ष दीपावली के दौरान फराह खान निर्देशित अपनी नयी फिल्म 'हैप्पी न्यू ईयर' के प्रदर्शन की योजना  बना रहे हैं।ख़बरों की मानें तो शाहरुख ने फिल्म की निर्देशक फराह खान को कहा है कि इसे अगले साल दीपावली पर रिलीज किया जाए। गौरतलब है कि  'ओम शांति ओम' दिवाली पर ही रिलीज हुई थी और इस फिल्म ने बॉक्स ऑफिस पर शानदार सफलता हासिल की थी। फिलहाल इस बात की पुष्टि नहीं की गई है कि 'हैप्पी न्यू ईयर' कब रिलीज होगी। उधर रणबीर कपूर की निगाहें भी अगले वर्ष की दीपावली पर टिकी हुई है। वे अनुराग बसु निर्देशीत 'जग्गा जासूस' के प्रदर्शन के लिए अगले वर्ष की दीपावली के दौरान की तारीख सुनिश्चित करना चाहते हैं। यदि रणबीर की ख्वाहिश पूरी हो जाती है,तो अगले वर्ष दीपावली की रौनक बढाने के लिए तीन बड़ी फ़िल्में शुद्धि,हैप्पी न्यू ईयर और जग्गा जासूस सिनेमाघरों में दस्तक दे सकती हैं। यदि ऐसा होता है,तो अगले वर्ष बॉक्स ऑफिस की दीपावली की रौनक तिगुनी बढ़ जाएगी..।
उम्मीद है कि आने वाले कई वर्षों तक हिंदी सिनेमा यूं ही दीपावली के जगमगाते दीयों से रोशन रहेगा और अपने रंग,ढंग और अंदाज से मनोरंजन के नित नए दीप जलाता रहेगा...।
दीपावली पर प्रदर्शित होने वाली पिछले दस वर्षों की फिल्मों की सूची-
2012-सन ऑफ सरदार,जब तक है जान
2011-रा.वन
2010-गोलमाल3,एक्शन रीप्ले
2009-ब्लू,मैं और मिसेज खन्ना,ऑल द बेस्ट
2008-गोलमाल रिटर्न्स,फैशन
 2007-सांवरिया,ओम शांति ओम
 2006-डॉन ,जानेमन
 2005-गरम मसाला,शादी नंबर वन
 2004-वीर जारा, ऐतराज

-सौम्या अपराजिता