Monday, December 5, 2016

...कि पैसा बोलता है !

-सौम्या अपराजिता
इन दिनों हर तरफ 'रुपए','बैंक','हजार','सौ' जैसे शब्द छाए हुए हैं। यूं तो पैसा सबके जीवन में बेहद मायने रखता है,मगर इन दिनों तो ऐसा लगता है...मानो सबकी चिंता पैसों के इर्द-गिर्द सिमट-सी गयी है। ज्ञात तथ्य है कि नोटबंदी के सरकारी फैसले के कारण ऐसा हुआ है। इस फैसले के कारण जहां देश की अर्थनीति में बड़ा परिवर्तन आया है,वहीँ फिल्मों में 'पैसे' और 'रुपए' से जुड़े गीत और फ़िल्में भी प्रासंगिक हो गयी हैं।
आजकल जिसके पास पांच सौ और दो हजार के नए नोटों की श्रृंखला आ गयी है उनसे चिढ़ते हुए बैंकों में लंबी लाइन लगने वाले लोग यही गुनगुना रहे होंगे-'काहे पैसे पे इतना गुरुर करे.... हे हे चार पैसे क्या मिले क्या मिले भई क्या मिले वो ख़ुद को समझ बैठे ख़ुदा।' इन दिनों हर तरफ पैसे की माया का जादू है। दरअसल,पैसे की माया अपरम्पार है। शायद...इसी दर्शन को 'काला बाज़ार' का यह गाना आगे बढ़ाता है-'ठन ठन की सुनो झंकार कि पैसा बोलता है।' वैसे पैसा अगर जरुरत है,तो वह अब मुसीबत भी बन गया है। तभी तो....जरुरत से ज्यादा पैसा हो,तो उसे बैंक में जमा कराने की मुसीबत और कम हो,तो घर खर्च के लिए बैंक के चक्कर लगाने की मुसीबत। ऐसे में.. बरबस ही 'कर्ज' के इस गीत की याद आ जाती है-'पैसा ओ पैसा ये हो मुसीबत न हो मुसीबत।'
जहां..आजकल पांच सौ और दो हजार रुपए की चर्चा हर तरफ छायी हुई है,वहीँ बीते जमाने में 'पांच रूपया,बारह आना' के भी अपने मायने थे...तभी तो 'चलती का नाम गाड़ी' के इस गीत के पीछे बेहद रोचक घटना जुड़ी हुई है। 'चलती का नाम गाड़ी' के नायक किशोर कुमार इन्दौर के क्रिश्चियन कॉलेज में पढ़ते थे। कॉलेज की कैंटीन से उधार लेकर खुद खाना और दोस्तों को खिलाना उनकी आदत थी। वह ऐसा समय था जब 10-20 पैसे की उधारी भी बहुत मायने रखती थी। किशोर कुमार पर जब कैंटीन वाले के पांच रुपए बारह आना उधार हो गए,तो वह उधार मांगे जाने पर किशोर कैंटीन में बैठकर ही टेबल पर ग्लास और चम्मच बजा-बजाकर पाँच रुपया बारह आना गा-गाकर कई धुन निकालते थे और कैंटीन वाले की बात अनसुनी कर देते थे। बाद में 'चलती का नाम गाड़ी' में उन्होंने गीत में इस 'पांच रुपया बारह आना' वाले गीत को बहुत ही खूबसूरती से इस्तेमाल किया।
रोचक है कि 'नोटबंदी' के मौजूदा दौर में जब प्लास्टिक मनी का महत्त्व बढ़ रहा है...ऐसे में,'दुश्मन' का गीत 'पैसा फैंको तमाशा देखो' कुछ हद तक अप्रासंगिक हो गया लगता है। साथ ही,अब शायद ही कोई भूलकर भी 'जॉनी गद्दार' के इस गीत को गुनगुनाने की हिम्मत करेगा-'कैश मेरी आँखों में,कैश मेरी साँसों में'। आखिर...अब जल्द ही कैश का खेल ख़त्म जो होने वाला है।हालांकि...कैश में न सही,प्लास्टिक मनी के रूप में ही सही,पैसे का दबदबा बना हुआ है। तभी तो,जब प्रेमी अपनी प्रेमिका की बढ़ती मांगों से परेशान हो जाता है,तो अक्सर कहता है-'क्यों पैसा-पैसा करती है,क्यों पैसे पे तू मरती है!' सच कहें तो प्यार,मोहब्बत,रिश्ते....सब इस भौतिक युग में पैसे का खेल बनकर रह गए हैं,तभी तो गुलज़ार ने 'कमीने' के गीत में लिखा है-'कौड़ी- कौड़ी पैसा पैसा ..पैसे का खेल.. चल चल सड़कों पे होगी ठैन-ठैन।' ऐसे में...निष्कर्ष तो एक ही है..... ' न बीवी न बच्चा, न बाप बड़ा न भैया द होल थिंग इज दैट कि सबसे बड़ा रुपैया।' सच में....'पैसा ये पैसा,कोई नहीं ऐसा।'
बॉक्स के लिए:
पैसे का महिमामंडन करते फिल्मों के शीर्षक-
*पैसा
*पैसा ये पैसा
*पैसा ही पैसा
*पैसा वसूल
*पैसा या प्यार
*सबसे बड़ा रुपैया
*मोह माया मनी
*अपना सपना मनी मनी
*आमदनी अठन्नी,खर्चा रुपैया
काले धन के मुद्दे को उजागर करती फिल्में-
*खोंसला का घोसला
*काला बाज़ार
*ब्लड मनी
*कॉर्पोरेट
*जन्नत
पैसे के महत्त्व को बताते प्रसिद्ध संवाद-
*'आज मेरे पास बंगला है, गाड़ी है, बैंक बॅलेन्स है, तुम्हारे पास क्या है!' (दीवार)
* 'तू लड़की के पीछे भागेगा, लड़की पैसे के पीछे भागेगी... तू पैसे के पीछे भागेगा, लड़की तेरे पीछे भागेगी।' ( वॉन्टेड)
*'पैसा पैसे को खींचता है।'(जन्नत)
*'पैसे की कैपिसिटी,जीने की स्ट्रेंथ,अकाउंट का बैलेंस और नाम का खौफ कभी ख़त्म नहीं होना चाहिए।' (वन्स अपॉन अ टाइम इन मुम्बई दोबारा)
*'पैसे बहाने से अच्छा है,खून बहाओ।'(औरंगजेब)

1 comment:

  1. I really appreciate your professional approach. These are pieces of very useful information that will be of great use for me in future.

    ReplyDelete

आपकी टिप्पणियों का स्वागत है...