Saturday, April 5, 2014

एक्टिंग में अच्छा हूं-रणवीर सिंह

रणवीर सिंह ने जब रुपहले पर्दे पर दस्तक दी थी,तो शायद ही किसी ने सोचा होगा कि साधारण नैन नक्श वाला यह चंचल-शोख अभिनेता एक दिन हिंदी फिल्मों का स्टार अभिनेता बनेगा जिसके साथ काम करने के लिए शीर्ष फिल्मकार और अभिनेत्रियां अपनी बारी का इंतज़ार करेंगी। पांच फिल्मों (बैंड बाजा बारात,लेडिज वर्सेज रिक्की बहल,लूटेरा,रामलीला और गुंडे) में अपने अभिनय के विविध रंग बिखेर चुके रणवीर बेहद कम अन्तराल में नयी पीढ़ी के सक्षम,प्रतिभाशाली और हरफनमौला अभिनेता बनकर उभरे हैं। रणवीर की बातें उन्हीं के शब्दों में..
एक्टर बनने की चाहत
मैं बांबे ब्वॉय हूं। बांद्रा के स्मॉल स्कूल लर्नस एकेडमी में पढ़ाई हुई। बचपन से ही एक्टर बनना चाहता था। स्टडी और स्पोर्ट में मैं सुपर स्पेशल था,लेकिन मेरा ध्यान परफॉर्मिंग आर्ट की तरफ था। डिबेट,ड्रामा..में मैं अच्छा था। मैंने सोचा की मुझे फिल्म इंडस्ट्री का हिस्सा बनना चाहिए,लेकिन फिर यह मैंने सोचा कि पता नहीं मुझे मौका मिलेगा या नहीं। उस समय मेरे दिमाग में यह बात थी कि फिल्म इंडस्ट्री में सिर्फ फिल्म इंडस्ट्री से जुड़े लोगों को ही मौका मिलता है,पर अब वक्त बदल चुका है। अब लोग मेरिट के हिसाब से सोच रहे हैं। ...तो एक्टर बनने के सपने के बारे में सोचते-सोचते मैं अपने दूसरे पैशन पर भी ध्यान दे रहा था क्रिएटिव राइटिंग। इसी बीच अमेरिका में इंडियाना यूनिवर्सिटी में एक्टिंग क्लास के लिए गया। एक्टिंग क्लास में मिल रहे रेस्पांस से मुझे लगा कि मैं एक्टिंग में अच्छा हूं। मैंने रियलाइज किया कि मैं तो एक्टर ही बनूंगा। एक्टिंग में ग्रैजुएशन की डिग्री लेने के बाद मैंने थिएटर भी किया। मुंबई वापस आने के बाद मैंने खुद से कहा कि अब मुझे हिंदी फिल्मों का एक्टर बनना है। ....और उसके बाद से संघर्ष शुरू हुआ।
संघर्ष का वो दौर
टेलीविजन कमर्शियलों के लिए असिस्टेंट डायरेक्टर बनने से शुरूआत हुई। उसके बाद मैंने सोचा कि अब डायरेक्टर-प्रोड्यूसर को अप्रोच करना पड़ेगा। कास्टिंग डायरेक्टर से मिलने लगा। कई जगह ऑडिशन दिया। कई जगह सेलेक्ट हुआ और कई जगह नहीं हुआ। उस समय लगा कि अच्छा मौका मुझसे बहुत दूर है। यह सब इनकरेजिंग नहीं था,फिर भी मैं एक बड़े मौके का  इंतजार कर रहा था। तीन साल के स्ट्रगल के बाद 'बैंड बाजा बारात' के लिए ऑडिशन दिया और सेलेक्ट कर लिया गया। स्ट्रगल पीरियड के दौरान इतनी सारी अनिश्चितता थी कि समझ में नहीं आ रहा था की क्या करूं?
एक्टिंग सिखायी नहीं जाती
एक्टिंग ऐसी चीज है जो सिखायी नहीं जा सकती। ....या तो आप कर सकते हो या नहीं कर सकते हो। आपकी पर्सनालिटी है पर डिपेंड करता है कि आप एक्टिंग कर पाते हो या नहीं? एक्टिंग की ट्रेनिंग आपको हेल्प करती है। ट्रेनिंग के कारण एक्टिंग की तरफ आपका अप्रोच शार्प और क्लियर हो जाता है।
तुलना,मगर नक़ल नहीं
अपनी पहचान बनाना चाहता हूं। मेरा कांसस एफर्ट है कि मैं किसी दूसरे एक्टर की नक़ल नहीं  बनूं। दूसरे एक्टर और उनकी फिल्मों से खुद को कंपेयर अवश्य करता हूं क्योंकि यह कंपेरिजन मुझे आगे बढ़ने के लिए प्रेरित करता है। जब दूसरों को बेहतरीन एक्टिंग करते हुए देखता हूं तो मुझे लगता है कि मैं उनसे भी शानदार कुछ करूं लेकिन मैं कभी किसी दूसरे से कंपीटिशन नहीं करता।
हर बार कुछ नया और अलग
मैं आज कैरियर के जिस मुकाम पर हूं, वहां मेरे लिए बहुत जरूरी है कि मैं आम लोगों से अलग तरह का काम करूं। मैं सिर्फ ऐसा काम स्वीकार कर रहा हूं जिसमें नवीनता हो। मै खुद को ऐसे एक्टर के रूप में स्थापित करना  चाहता हूं कि जिसके बारे में लोग सोचें कि यह एक्टर किसी भी किरदार में नज़र आ सकता है। मैं खुशनसीब हूं कि एक तरफ जहां अली अब्बास जफ़र को लगा कि उनकी फिल्म 'गुंडे' के किरदार में मैं फिट बैठता हूं,वहीं दूसरी तरफ विक्रम मोटवानी को लगा कि मैं उनकी फिल्म 'लुटेरा 'में भी फिट बैठता हूं।
गोविंदा का साथ
इस समय 'किल दिल' की शूटिंग कर रहा हूं। बहुत अच्छी स्क्रिप्ट है। मैं बचपन के दिनों से ही गोविन्दा का बहुत बड़ा फैन रहा हूं। मै अपने स्कूल के दिनो से ही गोविन्दा की नकल करता आ रहा हूं। मुझे विश्वास नही हो रहा है कि 'किल दिल' मै गोविन्दा के साथ काम कर रहा हूं।( 'किल दिल' में परिणीति चोपड़ा और अली जफ़र भी महत्वपूर्ण भूमिकाओं में हैं।)
जोया के निर्देशन में
जोया अख्तर के साथ (फिल्म-दिल धड़कने दो) काम करने को लेकर बेहद उत्साहित हूं।मेरा मानना है कि जोया फिल्म इंडस्ट्री की सार्वधिक प्रतिभावन निर्देशकों में एक हैं।जोया के साथ काम कर मुझे अपने अभिनय का नया पहलू दिखाने को मिलेगा जो दर्शकों को हैरान कर देगा।
-सौम्या अपराजिता

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