Saturday, September 21, 2013

छोटे पर्दे की आस्था

छोटे पर्दे पर जब भी आस्था का समंदर आता है,दर्शक उसमें गोते लगाने के लिए तैयार रहते हैं। धार्मिक भावनाओं की लहरों के साथ चलने के लिए दर्शकों का उत्साह हमेशा चरम पर होता है। दर्शकों की इसी आस्था को भुनाने के लिए धारावाहिक निर्माता वर्षों से पौराणिक चरित्रों पर आधारित धारावाहिकों का निर्माण करते रहे हैं। यह सिलसिला आज भी जारी है। इन दिनों दर्शक पारिवारिक धारावाहिकों और रियलिटी कार्यक्रमों के साथ-साथ अलग-अलग चैनलों पर कृष्ण,राम,बुद्ध और शिव के पौराणिक और धार्मिक चरित्रों के स्क्रीन अवतार को करीब से देख-सुन पा रहे हैं।

एक दौर ऐसा भी
 एक दौर ऐसा भी था ,जब छोटा पर्दा पौराणिक चरित्रों में ही रचा-बसा था।  दूरदर्शन से निजी चैनलों तक धार्मिक धारावाहिकों की धूम थी। दूरदर्शन के दिनों में रामानंद सागर द्वारा रामायण और बीआर चोपड़ा द्वारा महाभारत जैसी महान गाथाओं को प्रसारित कर छोटे पर्दे की दुनिया में इतिहास रचा गया था। जब इन दो धारावाहिकों का प्रसारण  शुरू होता था, तब मोहल्ले और गलियों में सन्नाटा छा जाता था। तब तक हर घर में टेलीविजन नहीं पहुंचा था और लोग अड़ोस-पड़ोस के लोगों के साथ बैठकर पौराणिक धारावाहिकों का आनंद उठाया करते थे। रामायण और महाभारत के बाद भी पौराणिक चरित्रों पर आधारित धारावाहिक दर्शकों का मनोरंजन करते रहें। श्री कृष्णा,ओम नमः शिवाय,लव कुश,श्री गणेश जैसे कई धारावाहिक दर्शकों की धार्मिक भावनाओं को लुभाते रहे।

मोह भंग
वह वक़्त भी आया जब पारिवारिक धारावाहिक की लोकप्रियता के बीच निर्माताओं का रुझान पौराणिक धारावाहिकों की ओर कम हो गया । ऐसा नहीं था कि पौराणिक चरित्रों पर आधारित धारावाहिक निर्मित नहीं होते थे। उनका निर्माण होता था,पर उनकी संख्या कम हो गयी थी। कुछेक धार्मिक और पौराणिक धारावाहिक ही प्रसारित होते थे। दरअसल,पौराणिक चरित्रों पर आधारित धारावाहिकों का निर्माण अधिक चुनौतीपूर्ण होता है। पोशाक और सेट की भव्यता पर ध्यान देने के साथ-साथ स्पेशल इफ़ेक्ट का भी सहारा लेना पड़ता है। पौराणिक धारावाहिक में वक़्त,पूंजी और परिश्रम का अधिक निवेश होता है। निर्माता धीरज कुमार कहते हैं,' ,’धर्म-पुराण पर आधारित कथाओं पर बनने वाले सीरियलों का बजट सामान्य टीवी प्रोजेक्ट्स की तुलना में काफी ज्यादा होता है। ऐसे में चैनलवाले चाहते हैं कि कम कीमत में बननेवाले धारावाहिकों का निर्माण किया जाये।' तथ्यों का सटीक होना भी पौराणिक धारावाहिकों के निर्माताओं की चुनौती होती है। इस चुनौती से बचने के लिए भी कई निर्माताओं ने धार्मिक धारावहिकों के निर्माण की गति को रोक दिया था।

महादेव ने दिखाई राह
 पिछले एक वर्ष से पौराणिक धारावहिकों  के प्रति नए सिरे से निर्माताओं का रुझान बढ़ा। इस रुझान का प्रेरक है  धारावाहिक 'देवों के देव महादेव।' शिव के अलग-अलग रंग और मिजाज को दर्शकों के सामने नाटकीय अंदाज में पेश करने वाले इस धारावाहिक ने लोकप्रियता की ऊंचाइयां छुयी है। महादेव की केन्द्रीय भूमिका में मोहित रैना के रूप में छोटे पर्दे को नया सितारा मिला,तो कई और पौराणिक धारावाहिकों के निर्माण की राह प्रशस्त हुई। साथ ही,कई पुराने पौराणिक धारावाहिक फिर से दिखाये जाने लगे।

फिर उमड़ा आस्था का समन्दर
पिछले दिनों दो नए पौराणिक धारावाहिकों 'महाभारत' और 'बुद्ध' ने छोटे पर्दे पर दस्तक दी। जी टीवी पर 'बुद्ध' का प्रसारण शुरू हुआ,तो स्टार प्लस पर नए रूप-रंग में सजी 'महाभारत' ने दस्तक दी। बुद्ध के व्यक्तित्व से दर्शकों को परिचित कराने के उद्देश्य से धारावाहिक 'बुद्ध'के निर्माण की योजना बनी। कबीर बेदी, समीर धर्माधिकारी, निगार खान, गुंजन उपरारी और सिद्धार्थ वासुदेव अभिनीत इस धारावाहिक को भव्यता को बरकरार रखने के हर संभव प्रयास किये गए हैं। वहीं.. दूसरी तरफ ' सिद्धार्थ तिवारी निर्मित 'महाभारत' अपनी झलकियों में ही दर्शकों को प्रभावित करने में सफल रहा है। छोटे पर्दे पर यह महाभारत का तीसरा संस्करण है। निर्माता सिद्धार्थ कुमार तिवारी की यह सिनेमाई प्रस्तुति फिल्म के बॉक्स ऑफिस रिकार्ड जितनी ही खर्चीली है। इसकी तकनीकी विलक्षणता को स्थापित करने के लिए  निर्माता ने तकनीक में बड़ा निवेश किया है। 'महाभारत' से जुड़े लेखक देवदत्त पटनायक कहते हैं,' स्टार प्लस का महाभारत विभिन्न किरदारों को सहजता से प्रस्तुत करने के लिये व्यवस्थित तरीके से प्रस्तुत किया गया है।इसका स्टाइल अनूठा है और इसमें उच्च गुणवत्तायुक्त विजुअल इफेक्ट है। मुझे पूरा विश्वास है कि स्टार प्लस का महाभारत आज के युवाओं  को आकर्षित करेगा क्योंकि वे इसे अपने समय से जोड़ कर देख पाएंगें।'

लार्जर दैन लाइफ
 पौराणिक चरित्रों पर आधारित धारावाहिकों से जुड़ने के लिए नए दौर के कलाकार लालायित रहते हैं। इस दिनों एक बार फिर पौराणिक धारावाहिकों के निर्माण की बयार के कारण हर कलाकार अपने प्रिय पौराणिक पात्र को जीवंत करने का सपना संजो रहा है। कई कलाकारों का यह सपना पूरा भी हो रहा है। 'महाभारत' में सुभद्रा की भूमिका निभा रही विभा आनंद कहती हैं,मुझे लम्बे समय से माइथोलोजिकल कैरेक्टर निभाने का मन कर रहा है। महाभारत के कॉस्टयूम ड्रामा का हिस्सा बनने का मौका मिला है। बेहद उत्साहित हूं। सुभद्रा की भूमिका निभाने का अवसर मिलना मेरे लिए किसी सपने के सच होने जैसा है।' कलाकार सिर्फ पौराणिक चरित्रों को निभाने के अवसर मिलने मात्र से संतुष्ट नहीं है। वे पौराणिक चरित्रों को जीवंत करने के लिए एड़ी-चोटी का जोर भी लगा रहे हैं। शाहिर शेख को जब महाभारत में अर्जुन की भूमिका के लिए चुन गया,तो उन्होंने एक वर्ष का समय अर्जुन के चरित्र में ढलने के लिए लगा दिया। यह पौराणिक चरित्रों को निभाने के प्रति कलाकारों का उत्साह ही है जो उन्हें ऐसा करने के लिए प्रेरित करता है। दरअसल,आमतौर पर छोटे पर्दे के कलाकारों को दैनिक धारावाहिकों में ' लार्जर दैन लाइफ' चरित्रों को जीने का मौका नहीं मिलता है। यही वजह है कि जब भी किसी पौराणिक धारावाहिक में अभिनय का प्रस्ताव उनके सामने आता है,तो उसे वह छोटे पर्दे के दायरे में रहते हुए 'लार्जर दैन लाइफ' चरित्र जीने का अवसर समझते हैं।

पौराणिक चरित्रों पर आधारित धारावाहिकों के प्रति बढ़ा उत्साह सकारात्मक है,पर यह बात भी दीगर है कि आस्था के नाम पर दर्शकों के सामने आडम्बर और अन्धविश्वास से जुडी सामग्री नहीं पेश की जाए। साथ ही, यह भी आवश्यक है कि वर्तमान में पौराणिक चरित्रों की विशेषताओं की प्रासंगिकता का भी उल्लेख किया जाए जिससे दर्शक प्रेरित हों।
-सौम्या अपराजिता

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