Tuesday, July 2, 2013

यूं ही नहीं मिलती मंजिल ...

-सौम्या अपराजिता 
अभिनेता का  पुत्र या पुत्री अभिनय की राह चुने ,तो यह स्वीकार्य  है। आखिर अभिनय का संस्कार उनके खून में जो  दौड़ता है। ..लेकिन यदि निर्माता-निर्देशक की पुत्री या पुत्र अभिनय की और रुख करते हैं तो उसे भी स्वाभाविक ही माना जाता है। आखिर लाइट ! कैमरा ! और एक्शन ! के संकेत शब्दों के बीच  उनका बचपन जो गुजरा है। ..और फिर यदि पिता फिल्म निर्माता या निर्देशक है तो उन्हें अभिनय के  सफ़र की शुरुआत के लिए दूसरे निर्माताओं या निर्देशकों का दरवाजा नहीं खटखटाना पड़ता है। पहले अवसर के लिए संघर्ष नहीं करना पड़ता है। साथ ही उन्हें  सरलता से स्थापित और सफल अभिनेता या अभिनेत्री सह कलाकार के रूप में उपलब्ध हो जाते हैं। उन्हें हिंदी फ़िल्मी दुनिया में 'ग्रैंड लौन्चिंग' भी मिलती है। यदि बड़े परिप्रेक्ष्य में देखें तो अभिनेता-अभिनेत्रियों के पुत्र और पुत्रियों की अपेक्षा  निर्माता-निर्देशकों के पुत्र और पुत्रियों के लिए हिंदी फिल्मों में प्रवेश ज्यादा सरल और सहज है। हालाँकि, ऐसे नवोदित अभिनेता और अभिनेत्री भी हैं जो अपने निर्माता-निर्देशक पिता के व्यावसायिक सहयोग के बिना हिंदी फिल्मों में अपनी जमीन तलाश रहे हैं। वे आसान रास्ते पर नहीं  चलना चाहते हैं। संघर्ष के लिए तैयार रहते हैं क्योंकि उन्हें पता है कि मंजिल यूँ ही नहीं मिलती है । 
                                                     अपनी डगर .... 
पिछले वर्ष प्रदर्शित हुई फिल्म ' स्टूडेंट ऑफ द ईयर' से हिंदी फिल्मों को दो नए चेहरे वरुण धवन और आलिया भट्ट  मिले। आलिया निर्माता-निर्देशक महेश भट्ट की पुत्री हैं तो वरुण हास्य फिल्मों के माहिर निर्देशक डेविड धवन पुत्र हैं। रोचक बात है कि आलिया और वरुण की पहली फिल्म का उनके निर्देशक पिता से कोई सम्बन्ध नहीं है। करण जौहर ने आलिया और वरुण को हिंदी फ़िल्मी दर्शकों से परिचित कराया। आलिया ने यह तय कर लिया था कि वे अपने पिता की फिल्मों से अभिनय के सफ़र की शुरुआत नहीं करेंगी। आलिया बताती हैं,‘मुझे फिल्मों और अभिनय का कोई अनुभव नहीं है। मैंने कोई प्रशिक्षण नहीं लिया। इसलिए मेरे लिए पूरा अनुभव सीखने वाला रहा। मुझे तो अभिनय का ‘ए’ भी नहीं पता था। मैंने तय किया था कि मेरे पिता की फिल्म से शुरुआत नहीं करुंगी क्योंकि यह आसान रास्ता होता। मेरे साथ करीब 500 लड़कियों ने ऑडिशन दिया था। अगर मेरे पिता होते तो वह मेरे साथ अन्य किसी लड़की का ऑडिशन नहीं लेते। वह केवल मुझे फिल्म में शामिल कर लेते। मैं कठिन रास्ते से इसे सीखना चाहती थी।’ पहली फिल्म की सफलता के बाद दूसरी फिल्म 'मैं तेरा हीरो' में वरुण धवन को पिता डेविड धवन का साथ मिला है। पिता के निर्देशन में अभिनय का अनुभव बांटते हुए वरुण कहते हैं,'  डैड काफी सख्ती से काम लेते हैं और वे यह भूल जाते हैं कि मैं उनका बेटा हूं। वरुण और आलिया की तरह अर्जुन कपूर ने निर्माता पिता बोनी कपूर के व्यावसायिक सहयोग के बिना हिंदी फिल्मों में अपने पहले अवसर  की तलाश की। यशराज फिल्म्स की 'इशकजादे' से अर्जुन ने फ़िल्मी सफ़र की शुरुआत की। अर्जुन कहते हैं,' यह  ज़रूर है कि मुझे अपने पिता की वजह से इंडस्ट्री में खूब मान मिलता है।मैं जिससे भी मिलने जाता हूं वह  मेरे साथ बहुत तमीज़ से पेश आता है।फिल्में बनाना एक बिज़नेस है।पापा मेरे साथ फिल्म तभी बनाते जब मैं किसी फिल्म की कहानी में सही बैठता। अगर पापा बस यह सोच कर फिल्म बना डालते कि उन्हें मुझे इंडस्ट्री में लॉन्च करना है तब तो यह बात सही नहीं होती।'

पिता के भरोसे  
 निर्माता पिता की बदौलत हिंदी फिल्मों में ग्रैंड लौन्चिंग मिली जैकी भगनानी, हरमन बावेजा और अमिता पाठक को। हालाँकि हिंदी फिल्मों के बड़े निर्माताओं के ये पुत्र अपनी पहचान बनाने में असफल रहे हैं और संघर्ष कर रहे हैं। हरमन बावेजा के हिंदी फिल्मों में भव्य पदार्पण का सपना देखा था उनके पिता हैरी बावेजा ने,पर उनके सपने पर पानी फिर गया जब प्रियंका चोपड़ा और हरमन की फिल्म ' लव स्टोरी 2050' बॉक्स ऑफिस पर औंधे मुंह गिर गयी। हरमन की दूसरी, तीसरी और चौथी फिल्म भी असफल हो गयी और इस तरह हरमन का सितारा चमकने से पहले ही  डूब गया। सफल निर्माता वाशु भगनानी ने अपने पुत्र  जैकी भगनानी के  लिए चार फिल्मों ('कल किसने देखा','फालतू' ,' अजब गजब लव' और 'रंगरेज' ) का निर्माण किया,पर वे हिंदी फिल्मों में जैकी के सुनहरे भविष्य का सपना नहीं साकार कर पाए।  निर्माता कुमार मंगत की पुत्री अमिता  पाठक ने जब हिंदी फिल्मों की राह पकड़ी ,तो उनके पिता ने उनका साथ दिया और बना डाली फिल्म 'हाल ए  दिल।' फिल्म असफल  रही और अभिनेत्री  के रूप में अमिता का  संघर्ष जारी है।

कुछ कर दिखाएंगे  
वाशु भगनानी और हैरी बावेजा की तरह निर्माता कुमार तौरानी भी अपने पुत्र के लिए हिंदी फिल्मों में सुनहरे भविष्य के सपने बुन रहे हैं।उन्होंने  अपने सुपुत्र गिरीश तौरानी के हिंदी फिल्मों में  ग्रैंड लौन्चिंग के लिए ' रमैया वस्तावैया' का निर्माण किया है। कुमार तौरानी कहते हैं,'गिरीश ने मुझे एक बार कहा था कि वो एक्टर बनना चाहते हैं। लेकिन तब मैंने उसे कहा कि ये जितना आसान लग रहा है उतना आसान है नहीं। इसके लिए बहुत मेहनत करनी पड़ती है। अगर मुझे तुम्हारी कमिटमेंट दिखी तो मैं जरुर तुम्हें लॉंच करुंगा। मैंने उसे कहा कि मै तुम्हारा पिता हूं ये एक प्लस प्वाइंट है लेकिन इसमें बहुत मेहनत है। फिर मुझे लगा कि वो एक्टिंग के लिए सीरियस हैं तो मैंने भी उनका साथ दिया। फिर मैंने प्रभुदेवा जी से बात की और जब उन्होंने गिरीश में विश्वास दिखाया तो मैंने भी आंखें बंद करके फिल्म का निर्माण करने का फैसला कर लिया।' lगिरीश की स्वीकार्यता को निश्चित बनाने के लिए कुमार ने 'रमैया वस्तावैया' के निर्माण की बागडोर सफल निर्देशक प्रभुदेवा को सौंपी है। गिरीश कहते हैं,"दर्शक हमेशा राजा रहेंगे और यदि वे आपसे खुश होंगे तो आपको आगे बढ़ाएंगे। यह बात महत्व नहीं रखती कि आप किस परिवार से संबंध रखते हैं। यदि आपमें प्रतिभा है तो आप यहां अपनी जगह बना सकते हैं।'


जो बन गए मिसाल 
आमिर खान के हिंदी फ़िल्मी दर्शकों से पहले परिचय की पृष्ठभूमि में  उनके निर्माता  पिता थे । पिता ताहिर हुसैन  और चाचा नासिर हुसैन के सहयोग और मार्गदर्शन में हिंदी फिल्मों की राह  चुनी। हालाँकि, आमिर ने धैर्य , लगन , प्रतिभा और निरंतर अभ्यास से हिंदी फिल्मों में  विशिष्ट अस्तित्व तलाश लिया है। अनिल कपूर ने भी अपने निर्माता पिता  सुरिंदर कपूर की छत्रछाया से दूर रहते  हुए स्वयं को समर्थ और सफल अभिनेता के रूप में स्थापित किया। आलिया भट्ट ने पिता के सहयोग के बिना फिल्मों की दुनिया में कदम रखा है ,पर उनकी  बड़ी बहन पूजा भट्ट ने पिता महेश भट्ट के निर्देशन में  'डैडी' से अभिनय की पारी की शुरुआत की थी। हालांकि वक़्त  के साथ पूजा ने सक्षम अभिनेत्री के साथ -साथ निर्माता-निर्देशक के रूप में भी हिंदी फिल्मों में खुद को स्थापित किया है । 

No comments:

Post a Comment

आपकी टिप्पणियों का स्वागत है...