Monday, May 14, 2012

यादों के झरोखों से .........


कल रात निंदिया रानी मुझसे रूठ  गयी थीं.तभी तो, चाहकर भी आँखें नींद से बोझल नहीं हो रही थी..मैंने भी सोच लिया कि रूठी निंदिया रानी को  मनाकर ही दम लूंगी.अपनी आँखें मूँद ली और खुद से वादा किया कि अब कुछ नहीं सोचूंगी..बस,निंदिया देवी से प्रार्थना कर उन्हें खुश करने की कोशिश करुँगी,पर लगता है नींद की देवी मुझसे बेहद नाराज थीं...जब भी मैं आँखे मूंदती...कुछ जाने-पहचाने चेहरे यादों के झरोखे से झाँकने लगते....मैंने भी निंदिया रानी के आगे अपने घुटने टेक दिए...उन्हें मनाने का विचार छोड़कर यादों के महासागर में गोते लगाने का इरादा कर लिया....
यादों के झरोखों से झांकना शुरू किया और पहुँच गयी पटना यूनिवर्सिटी के पीजी डिपार्टमेंट में...जहाँ राजनीति विज्ञान की कक्षा प्रारंभ होने के पहले की गहमागहमी के बीच मैं क्लासरूम में प्रवेश करती हूँ ...कुछ लड़कियाँ मेरी तरफ आयीं..उनमे से एक ने मुझसे पूछा,'तुम यहाँ क्या कर रही हो बच्चा? तुम्हारी बड़ी बहन या कोई बड़ा भाई इस क्लास में है क्या? ' मैंने जवाब दिया,'मैंने भी आपकी तरह यहाँ एडमिशन लिया है..क्या आप मेरी दोस्त बनेंगी?' सभी लड़कियों ने मेरी तरफ एक बार फिर देखा और  सबने एक सुर में कहा,'क्यों नहीं? तुम हमसे उम्र में छोटी हो ,तो हम तुम्हे अब से बच्चा कहेंगे ...तुम्हे कोई ऐतराज़?' मैंने मूक सहमति दे दी.उस पल मुझे इस बात का एहसास नहीं था कि वे नयी-नवेली सहेलियां  मेरे जीवन की प्रेरणा बनेंगी..अरे! मैंने तो अपनी पंच सहेलियों का नाम ही नहीं बताया..कविता...शांत और गंभीर,यूथिका..चंचल और जिंदादिल,मोनिका...मेधावी, भारती...परिपक्व और सुलझी हुई और राखी...निश्छल और सहयोगी.
रोचक है कि मोनिका,राखी,भारती,यूथिका और कविता...सभी इंग्लिश मीडियम की छात्रा थीं जबकि मैं हिंदी मीडियम की..क्लास में भी शिक्षक इंग्लिश में लेक्चर दिया करते थे,पर मुझे कभी तकलीफ नहीं हुई क्योंकि मैं उसी पल उसका हिंदी रूपांतर कर नोट्स बना लिया करती थी.जहाँ तकलीफ होती,मेरी सहायता के लिए राखी तैयार रहती थी.हालाँकि,मोनिका की तेजस्विता,यूथिका का बिंदास अंदाज़,कविता की गंभीरता और भारती की परिपक्वता से मैं प्रभावित थी ,पर  मुझपर स्थायी प्रभाव हुआ राखी के निस्वार्थ व्यक्तित्व का ..अपने करीबियों के चेहरे पर  चिंता की लकीरें देखकर राखी बेचैन हो जाया करती थी.उस वक़्त वह अपनी प्राथमिकताएं भूल जाती थी.निश्छल भाव से दूसरों के दुख बांटने के लिए तैयार रहती थी.राखी से मिलने से पहले मेरी नज़रों में ऐसे व्यक्ति लुप्तप्राय थे जो निजी लाभ की उम्मीद किये बिना निस्स्वार्थ होकर दूसरों के सहयोग के लिए तैयार रहते हैं..राखी से परिचय के बाद मेरा पूर्वानुमान गलत साबित हुआ ....

अब यादों का कारवां पहुंचा मेरे ससुराल ..शादी के कुछ दिन ही बीते थे और मुझे पता चला कि एक महीने बाद पीजी के फर्स्ट ईयर की परीक्षा होने वाली है..मैंने पढ़ाई जोर-शोर से शुरू कर दी.अपनी किताबों और नोट्स को पलट रही थी,तभी माँ मेरे पास आयीं और उन्होंने एक लिफाफा हाथ में थमाते हुए कहा,'देखों तुम्हारे लिए राखी ने कुछ भेजा है..मैंने लिफाफा खोला,तो उसमे से 8 पन्नों का एक पत्र निकला'.राखी ने पत्र में लिखा था ..'प्रिय सौम्या,मैं तुम्हारी तरह शुद्ध हिंदी तो नहीं लिख पाती हूँ,फिर भी कोशिश कर रही हूँ ..उम्मीद है,तुम अच्छी होगी.ससुराल में सभी तुम्हारा ख्याल रखते होंगे..मुझे पता है कि तुम फर्स्ट इयर की पूरी क्लास ATTEND नहीं कर पायी थी इसलिए नोट्स बनाने में तुम्हे तकलीफ हो रही होगी..मैं इस लेटर के साथ तुम्हें क्लास में दिए गए नोट्स के पॉइंट्स भेज रही हूँ ..उम्मीद है,तुम्हारे काम आएगी.' मैंने इतना ही पढ़ा और मेरी  आँखें भर आई..शादी के बाद कभी राखी से फ़ोन पर मैंने बात भी नहीं की थी..मैं तो यही सोच रही थी कि मुझे भूलकर सभी अपनी पढ़ाई में जुट गयी होंगी.आखिर,सबका लक्ष्य मेरिट लिस्ट में अपना नाम दर्ज करना जो था,पर मुझे क्या पता था कि कोई है ..जिसने अपनी व्यस्तताओं के बीच मेरे बारे में सोचा..जिसने अपने कीमती समय में से मुझे पत्र लिख कर मेरे साथ क्लास के नोट्स  बांटने का समय निकाला..मैं राखी की जगह होती तो शायद मेरे मन में कभी यह ख्याल भी नहीं आता.उस पत्र को मैंने एक बार नहीं कई बार पढ़ा. पूरे घर में घूम-घूम कर सबसे उस पत्र का जिक्र कर रही थी...मैंने  कभी  नहीं  सोचा  थी राखी जैसे व्यक्तित्व से मेरा कभी परिचय होगा..राखी जैसे 'प्राणी' सिर्फ मेरी कल्पना में रहा करते  थे..राखी के पत्र ने मुझे एहसास दिलाया कि हकीकत में भी ऐसे 'प्राणी' हैं..
निंदिया रानी मेरे करीब आने की कोशिश कर रही थीं,पर मैंने उनकी उपेक्षा जारी रखी...यादों के महासागर में गोते लगाने के बाद आधी रात में जब मैंने अपनी आँखें खोली,तो मेरे कदम खुद-ब-खुद किताबों की सेल्फ की तरफ बढ़ चले.सेल्फ पर रखी पुरानी डायरी निकाली.  डायरी के दो पन्नों के बीच रखे राखी के पत्र में लिखे शब्दों पर एक बार फिर अपनी नजरें दौडाई..एक बार मेरी आँखों से अश्रुधारा बह निकली..यह सच है कि उस पत्र में लिखे शब्द साधारण थे,पत्र में लिखे शब्दों का भाव पक्ष और शिल्प पक्ष भी प्रभावी नहीं था,पर उस साधारण से पत्र से मुझे 'निस्वार्थ' और 'निश्छल' बनने की प्रेरणा मिली ..उस पत्र ने मुझे बताया कि दूसरों की खुशियों में अपनी खुशियाँ ढूँढना का आनंद कितना अद्भूत और अतुल्य होता है....!
-सौम्या अपराजिता


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