दादी कहती थी ,
तुम दूसरों की भलाई करो,
तुम्हारी भलाई स्वयं ईश्वर करेंगे .
दादा जी कहते थे,
कर्तव्यनिष्ठ बनो,
कर्म ही इंसान को महान बनता है .
पापा कहते हैं,
भीड़ का हिस्सा मत बनो,
अपनी विशेष पहचान बनाओ.
माँ कहती है,
कुछ ऐसा करो कि
हम सब तुम पर गर्व कर सकें.
पति कहते हैं
विनम्र बनो,पर ध्यान रखो
तुम्हारी सहजता और अपनत्व उपहास का विषय ना बने .
भाई कहते हैं,
प्रैक्टिकल बनो,
इमोशनल होने से काम नहीं चलेगा .
दोस्त कहते हैं,
पहले अपनी खुशियाँ देखो,
दूसरों की चिंता करना छोड़ दो .
मेरा मन कहता है,
सौम्या,तुम जैसी हो,वैसी ही रहो
यूँ ही,दूसरों की खुशियों में अपनी खुशियाँ ढूंढती रहो...!
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