Friday, May 15, 2009

पंकज कपूर: नई पीढ़ी के प्रेरणा स्रोत

-सौम्या अपराजिता
छोटे पर्दे से लेकर बड़े पर्दे तक और कला फिल्मों से लेकर व्यावसायिक फिल्मों तक पंकज कपूर के अभिनय ने दर्शकों पर प्रभावी छाप छोड़ी है। वे नयी पीढ़ी के अभिनेता-अभिनेत्रियों के प्रेरणा स्रोत हैं। पंकज कपूर की अदायगी छोटे पर्दे और बड़े पर्दे पर समान प्रभाव छोड़ती है। अभिनय के औपचारिक प्रशिक्षण के बाद पंकज कपूर ने हिन्दी फिल्मों की ओर रूख किया।
लुधियाना में बचपन के खुशनुमा दिन बिताने के बाद पंकज कपूर ने दिल्ली से इंजीनियरिंग की पढ़ाई की। उसके बाद उन्होंने नेशनल स्कूल ऑफ ड्रामा का रूख किया। नेशनल स्कूल ऑफ ड्रामा से स्नातक की पढ़ाई पूरी करने के बाद पंकज ने रंगमंच पर अपनी अभिनय-प्रतिभा का प्रदर्शन करना प्रारंभ किया। लगभग चार वर्षो तक वे रंगमंच से जुड़े रहें। पंकज कपूर को हिन्दी फिल्मों में अभिनय का पहला मौका श्याम बेनेगल की फिल्म आरोहण में मिला। आरोहण के तुरंत बाद वे गांधी में प्यारेलाल की भूमिका में दिखें। इन फिल्मों के बाद उन्होंने समानांतर सिनेमा का रूख किया। मंडी,जाने भी दो यारो,मोहन जोशी हाजिर हो,खंडहर और खामोश जैसी समानांतर फिल्मों में पंकज कपूर ने अभिनय की नयी परिभाषा गढ़ी। यह वह समय था जब समानांतर सिनेमा लोकप्रियता के ऊफान पर था। पंकज कपूर हिन्दी सिनेमा जगत में आयी इस नयी क्रांति का महत्वपूर्ण हिस्सा बन गए। धीरे-धीरे पंकज ने छोटे पर्दे की ओर भी अपने कदम बढ़ाए। जल्द ही पंकज कपूर करमचंद जासूस के रूप में छोटे पर्दे के दर्शक से रू-ब-रू हुए। शीघ्र ही करमचंद जासूस की भूमिका में पंकज कपूर की लोकप्रियता आसमान छूने लगी। वे करमचंद जासूस के रूप में सभी दर्शक वर्ग में लोकप्रिय हुएं। इस दौरान हिन्दी फिल्मों में भी वे सक्रिय रहें। चमेली की शादी,एक रूका हुआ फैसला,ये वो मंजिल तो नहीं जैसी क्लासिक फिल्मों के साथ-साथ पंकज कपूर ने जलवा जैसी मसाला फिल्म में भी अपनी झलक दिखायी। नयी पीढ़ी के अभिनेताओं के साथ राख और रोजा में वे दर्शकों से रू-ब-रू हुए। रूपहले पर्दे पर गंभीर भूमिकाएं और छोटे पर्दे पर हल्की-फुल्की भूमिकाओं में दर्शकों को रूलाने-हंसाने वाले पंकज कपूर अभिनय-कला के प्रति पूरी तरह समर्पित हैं। नयी पीढ़ी के अभिनेताओं ने तब अपने दांतों तले ऊंगली दबा ली जब उन्होंने विशाल भारद्वाज निर्देशित मकबूल में अब्बा जी की भूमिका में पंकज कपूर का अभिनय देखा। पंकज कपूर की निर्देशन-कला से भी जल्द दर्शक रू-ब-रू होंगे। उनके द्वारा निर्देशित पहली फिल्म के नायक शाहिद कपूर होंगे।
पंकज कपूर के निजी जीवन में कई उतार-चढ़ाव आए,पर विवादों के साये से वे हमेशा दूर रहें। पहली पत्‍‌नी नीलिमा अजीम से तलाक और अभिनेत्री सुप्रिया पाठक से विवाह को लेकर वे सुर्खियों में रहें,पर बिना किसी हंगामे के उन्होंने परिपक्वता के साथ निजी जीवन के इस महत्वपूर्ण निर्णय को अपने प्रशंसकों के स्वीकार-योग्य बनाया। हालांकि, नयी पीढ़ी के दर्शकों के बीच उनकी पहचान शाहिद कपूर के पिता के रूप में है,पर शाहिद स्वयं को खुशनसीब मानते हैं कि उन्हें अभिनय-कला में दक्ष पिता पंकज कपूर के सान्निध्य में अपनी अभिनय-प्रतिभा निखारने-संवारने का मौका मिला है। पंकज कपूर की अभिनय-प्रतिभा उम्र और काल की सीमा से परे है। वे अभिनय की हर विधा के सक्षम कलाकार हैं। हास्य धारावाहिक हो या गंभीर फिल्में,रंगमंच हो या टेलीविजन कमर्शियल पंकज कपूर की झलक-मात्र दर्शकों का ध्यानाकर्षण करती है। उम्मीद है,आने वाले कई वर्षो तक अभिनय-कला के प्रति समर्पित इस प्रतिभाशाली कलाकार की हिन्दी फिल्मों में उपस्थिति दर्शकों को यूं ही आकर्षित करती रहेगी ।

2 comments:

  1. पंकज कपूर मेरे बेहद पसंदीदा अभिनेता रहें हैं..."एक रुका हुआ फैसला", जाने भी दो यारों...से चलते हुए जब वो "मकबूल" तक पहुंचे तब तक उनकी अभिनय क्षमता में कमाल का निखार आ चुका था...उनकी बहुत सी फिल्में हालाँकि हिट नहीं हुई लेकिन उनका अभिनय कभी फ्लॉप नहीं हुआ...

    छोटे परदे पर करम चंद के अलावा एक फ़िल्मी गानों पर आधारित कार्यक्रम में उनकी सतीश कौशिक के साथ की गयी जुगलबंदी अब भी गुदगुदा जाती है..."ब्लू एम्ब्रेला" में उनके अभिनय को देख अभिभूत हुए बिना नहीं रहा जा सकता...

    इस विलक्षण अभिनेता को चाहे उतनी प्रसिद्धि नहीं मिली हो जितनी का वो हकदार है लेकिन उसे दर्शकों का प्यार खूब मिला है...

    इश्वर उन्हें लम्बी उम्र और सेहत दे ताकि वो अपनी अभिनय क्षमता से हमें चौंकाते रहें..
    नीरज

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  2. पंकज कपूर एक ऐसे अभिनेता भी रहे है जिनके साथ काम करने की ख्वाहिश बड़े-बड़े अभिनेता पाले हुए है इनमें चाहे अमिताभ बच्चन हो या फिर शाहरूख खान। निर्देशन के क्षेत्र में आकर वे अपनी दूसरी पारी को अंजाम देगें।
    इरशाद

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